रविवार, 25 मार्च 2012

ग्राम स्वराज्य का सपना साकार होः गोविंदाचार्य



पिछले दिनों लगातार तीन दिनों तक दिल्ली के जंतर-मंतर पर राष्ट्रीय स्वाभिमान आंदोलन ग्राम स्वराज्य व केंद्रीय बजट की सात फीसद राशि सीधे पंचायतों को दिए जाने की मांग कर रहे थे
एक तरफ राजनीति गर्म थी। दूसरी तरफ लगातार तीन दिनों तक केएन. गोविंदाचार्य दिल्ली स्थित जंतर-मंतर से आवाज उठाते रहे। यहां वे ‘ग्राम स्वराज्य’ की बात कर रहे थे और मांग कर रहे थे कि केंद्रीय बजट की सात फीसद राशि सीधे पंचायतों को दी जाएं ताकि गांधीजी के ‘ग्राम स्वराज्य’ के सपने को साकार किया जा सके। राजनीतिक दलों पर पंचायतों की उपेक्षा करने का आरोप लगाते हुए चिंतक और राष्ट्रीय स्वाभिमान आंदोलन के संस्थापक गोविंदाचार्य ने कहा कि संघीय ढांचा तभी मजबूत होगा जब लोकतंत्र के सबसे निचले निकाय को सशक्त बनाया जाएगा।
गोविंदाचार्य ने साफ-साफ कहा कि पंचायती राज व्यवस्था पेश किए जाने के बाद से पिछले 20 सालों में सभी राजनीतिक दलों ने पंचायतों को पूर्ण अधिकार सम्पन्न बनाने की प्रतिबद्धता को नजरअंदाज किया है। वे जंतर-मंतर पर राष्ट्रीय स्वाभिमान आंदोलन के तत्वावधान में आयोजित धरने को संबोधित कर बोल रहे थे। उनके नेतृत्व में यह धरना लगातार 12, 13 और 14 मार्च को चला। गौरतलब है कि 1993 में 73वें संविधान संशोधन से पंचायती राज की हवा चली थी। वैसे गोविंदाचार्य ने यहां पंचायतों के सशक्तिकरण के साथ-साथ अविरल व निर्मल गंगा, राजनीतिक चुनाव सुधार तथा भ्रष्टाचार एवं कालाधन के विषय पर जागरूकता फैलाने के लिए देशव्यापी अभियान चलाने की भी घोषणा की है।
उन्होंने कहा कि केंद्रीय बजट यदि 2.5 लाख करोड़ रुपए का है और देश में 2.5 लाख गांव हैं तो इस हिसाब से प्रत्येक पंचायत के खाते में 30 लाख रुपए आएंगे। गांवों से बड़े पैमाने पर पलायन के लिए सरकार की नीतियां जिम्मेदार हैं। देश के पांच हजार शहर व 75 हजार गांवों में भारत की 80 करोड़ आबादी रहती है। शेष भारत के पिछड़े पांच लाख गांवों में 40 करोड़ लोग रहते हैं। सरकार पलायन रोकने की बात करती है, लेकिन भूमि अधिग्रहण के नाम पर लोगों को उजाड़ रही है। भारत के अलावा दुनिया में कोई ऐसा देश नहीं है, जहां गांवों में आधारभूत ढांचे का विकास नहीं हुआ है।
धरना में शामिल होने आए डॉ. सुब्रह्मण्यम स्वामी ने कहा कि हम सभी गोविंदाचार्यजी के साथ हैं। तीन दिनों तक चले धरने में शामिल होने देश के दूर-देहात से भी कई संगठनों के प्रतिनिधि आए थे। इस अवसर पर राष्ट्रीय स्वाभिमान आंदोलन के संयोजक राकेश दुबे और कार्यकारी संयोजक सुरेंद्र बिष्ट ने निरंतर जोर देकर ग्राम स्वराज्य के हक में आवाज उठाने की बात कही।

(यह रिपोर्ट प्रथम प्रवक्ता के 1 अप्रैल के अंक में छपी हुई है।)

बुधवार, 3 जून 2009

अगर अन्याय है तब विरोध भी होगा

पिछले कुछ समय से देश में लोकसभा चुनाव का माहौल रहने के कारण जंतर-मंतर पर होने वाले विरोध प्रदर्शनों की खबरों को अपेक्षित महत्व भले ही नहीं मिल पाता हो लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि विरोध का सिलसिला थम गया हो क्योंकि जबतक अन्याय है तकतक विरोध भी होता ही रहेगा

पाकिस्तान में तालिबान सिख और हिंदू परिवारों से जजिया कर वसूल रहा है। इसके विरोध में पिछले दिनों राष्ट्रीय अकाली दल ने जंतर-मंतर पर प्रदर्शन किया। इस दौरान पाकिस्तान का झंडा भी फूंका गया। प्रदर्शनके दौरान राष्ट्रीय अकाली दल के अध्यक्ष परमजीत सिंह पम्मा ने कहा ''एक तरफ पाकिस्तान तालिबानियों से लड़ने के लिए अमेरिका से आर्थिक मदद प्राप्त कर रहा है। दूसरी तरफ तालिबानियों को शरण भी दे रहा है। यही कारण है कि तालिबानी सिख और हिंदू परिवारों से जजिया कर वसूल रहे हैं। उन्होंने कहा कि जो सिख और हिंदू परिवार जजिया कर नहीं दे पा रहे हैं वे पलायन करने को मजबूर हैं। वे अपना जान बचाने के लिए गुरुद्वारों में शरण्ा ले रहे हैं।
प्रदर्शन के दौरान सनातन धर्म सभा के प्रदेश अध्यक्ष मनोहर लाल कुमार ने इस मामले में केंद्र सरकार के प्रयासों को लेकर असंतोष व्यक्त किया। उन्होंने कहा, 'सरकार इसके लिए सार्थक कदम नहीं उठा रही है।' अपनी मांगों को लेकर राष्ट्रीय अकाली दल के एक शिष्टमंडल ने प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति कार्यालय में ज्ञापन दिया। इनकी दो प्रमुख मांगें हैं। पहली पाकिस्तान में रहने वाले सिख और हिंदू परिवारों से जजिया कर लेना तुरंत बंद किया जाए। दूसरी बात इन लोगों को सताने वाले तालिबानियों पर कार्रवाई करने के लिए पाकिस्तान सरकार पर दबाव बनाया जाए। इन लोगों का कहना था कि अगर सरकार जल्द ही कोई सार्थक कदम नहीं उठाती है तो हमलोग पाकिस्तानी उच्चायोग के सामने भी प्रदर्शन करेंगे।

कन्या भ्रूण हत्या लगातार ही सभ्य समाज के चेहरे पर कालिख पोत रही है। ऐसा नहीं है कि इसके खिलाफ कानून नहीं बना है। कानून बना है, पर उसका पालन सही तरीके से नहीं होता है। डॉक्टर आज भी चुपके से का अल्ट्रासाउंड करते हैं और गर्भ में ही नन्हीं सी जान को मार देते हैं। पिछले दिनों इसी मुद्दे को लेकर सैकड़ो महिलाओं और पुरुषों ने 'यूथ वेलफेयर फेडरेशन ऑफ इंडिया' की दिल्ली इकाई के बैनर तले जंतर-मंतर पर धरणा-प्रदर्शन किया। प्रदर्शन के दौरान उन लोगों का कहना था- 'सिर्फ कानून बनाने से कुछ नहीं होगा, जबतक हम अपने नजरिए में बदलाव नहीं लाएंगे। हम यह क्यों नहीं सोचते कि उस नन्हीं सी जान को भी इस दुनिया में आने का पूरा हक है। क्याेंकि, आज का बच्चा ही देश का भविष्य है। इसलिए मानव हत्या के इस जधन्य पाप से बचें और इस अभियान का हिस्सा बनें।'
बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर की प्रतिमा पर खुदे संविधान शब्द को हटाए जाने के विरोध में पिछले दिनों यूथ फॉर सोशल जस्टिस के बैनर तले जंतर-मंतर पर प्रदर्शन किया गया। यूथ फॉर सोशल जस्टिस के जेनरल सेकेट्री मनमोहन सिंह के अनुसार गत 14 अप्रैल को बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर के 118 वें जन्मदिवस पर कुछ लोग संसद भवन परिसर में लगी उनकी प्रतिमा पर श्रध्दा सुमन अर्पित करने गए थे। उन्होंने कहा, 'पहले बाबा साहेब की प्रतिमा के हाथ में एक किताब होती थी जिस पर संविधान शब्द खुदा हुआ था। इस शब्द को अब मिटा दिया गया है। इसका कारण यह है कि पिछले कुछ समय से संसदीय प्रशासन में जातीय और फासीवादी तत्वों का प्रभुत्व बढ़ गया है। ये लोग ऐसी स्थिति पैदा कर रहे हैं जिससे दलित बाबा साहेब के जन्मदिवस और पुण्यतिथि मनाने के लिए संसद के अंदर प्रवेश न कर सकें।''
अगर ऐसे लोग संसदीय प्रशासन में बने रहेंगे तो न केवल वे अपनी मनमानी करेंगे बल्कि संसद के अंदर की अमूल्य निधि को नुकसान भी पहुचाएंगे। संसद परिसर में लगी बाबा साहेब की प्रतिमा से छेड़छाड़ इसका ताजा उदाहरण्ा है। गौरतलब है कि इसको लेकर 14 अप्रैल को संसद भवन परिसर में लगभग 50 लोगों ने प्रदर्शन भी किया था। इस घटना का जिक्र करते हुए यूथ फॉर सोशल जस्टिस ने राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को एक ज्ञापन सौंपा है। उनका कहना था कि सरकार अगर जल्द ही इस मुद्दे पर कोई कदम नहीं उठाती है तो हमलोग अहिंसक आंदोलन शुरू करेंगे।

शनिवार, 20 दिसंबर 2008

विश्व विकलांग दिवस

हमारी आवाज सुनो
संजीव कुमार
तीन दिसंबर को विश्व विकलांग दिवस था। इस दिन डिसएबल्ड राइट्स ग्रुप (डीआरजी) के नेतृत्व में इंडिया गेट पर रैली और धरने का कार्यक्रम किया गया। इस कार्यक्रम में भारत के विभिन्न प्रांतों से हजारों मूक-बधिर, नेत्रहीन और विकलांग आए
'बाधाएं बांध नहीं सकतीं, आगे बढ़ने वालों को, विपदाएं रोक नहीं सकतीं, मर कर जीने वालों को।'
यह कहना है सागर पाराश्री का। सागर पाराश्री के बचपन से ही दोनों पैर ठीक से काम नहीं करते। वे व्हील चेयर के सहारे चलते हैं, लेकिन उनका हौसला कम नहीं हुआ। उन्होंने आम लोगों की तरह ही पढ़ाई की और आज उच्च शिक्षा प्राप्त कर वे शिक्षण का काम कर रहे हैं। इस दौरान उनके मन में कभी भी हीनता का भाव नहीं उपजा, क्योंकि उनका मानना है कि विपदाएं वैसे लोगों को रोक नहीं सकतीं, जो मर कर जीते हैं। यह कहानी सिर्फ सागर की ही नहीं है, बल्कि उन जैसे अनेक लोगों की है, जिन्होंने परिस्थितियों से हार नहीं मानी और खुद अपना रास्ता बनाया तथा अपनी मंजिल पाई। विश्व विकलांग दिवस के दिन ऐसे अनेक लोगों से मुलाकात हुई, जिन्होंने अपनी विकलांगता को ही अपनी शक्ति बना लिया। आज वे सब के सब अपने-अपने क्षेत्र में विशेषज्ञता हासिल कर नाम कमा रहे हैं।
तीन दिसंबर को विश्व विकलांग दिवस था। इस दिन डिसएबल्ड राइट्स ग्रुप (डीआरजी) के नेतृत्व में इंडिया गेट पर एक रैली और धरने का कार्यक्रम किया गया। इस कार्यक्रम में भारत के विभिन्न प्रांतों से हजारों मूक-बधिर, नेत्रहीन और विकलांग आए थे। इंडिया गेट पर इस दिन का दृश्य देखने लायक था। ऐसी समरसता जल्दी दिखाई नहीं देती। कहीं कोई भेदभाव नहीं दिखाई पड़ रहा था। इस रैली में मराठी, भोजपुरी, अवधी, तमिल, कन्नड़, मलयाली, गुजराती, उड़िया, पंजाबी, बंगाली आदि अन्यान्य भाषा-भाषी लोग आए थे, लेकिन यहां कहीं कोई भाषा, धर्म, संप्रदाय और जाति के आधार पर भेद नहीं दिखाई दे रहा था। काश, यह बात हमारे मराठी मानुष राज ठाकरे को भी समझ में आ जाती।
कार्यक्रम का आयोजन इंडिया गेट पर इसलिए रखा गया था कि विकलांगों की एकता की हुंकार सत्ताा के बहरे कानों तक पहुंच सके। इस कार्यक्रम में डीआरजी के संयोजक जावेद अबीदी का कहना था कि आज विश्व विकलांग दिवस के दिन पूरे देश के विकलांग इंडिया गेट पर एकत्रित होकर व्यवस्था में कुछ परिवर्तन लाना चाहते हैं, क्योंकि विकलांगता अब सिर्फ कल्याण का मुद्दा नहीं है। विकलांगों की समस्या का समाधान सिर्फ कल्याण की घोषणा करने से नहीं होगा। अब इन्हें मुख्यधारा में लाने की बात होनी चाहिए। इसलिए हम अपनी सारी शक्ति को एकत्रित करके सरकार को अपनी बात सुनाना चाहते हैं।
उनका कहना था कि आज हम अपनी सरकार और व्यवस्था से पूरी तरह दुखी हैं, क्योंकि आजादी के साठ सालों के बाद भी हम लोग उपेक्षित हैं और हमें हमारा अधिकार नहीं दिया जा रहा। इसलिए आज यहां एकत्रित हुए हैं। ऐसा नहीं है कि यह प्रदर्शन और रैली का काम एक दिन में हो गया है। इसके पीछे महीनों की मेहनत है, तब जाकर इतने विकलांग लोग यहां आए हैं। इन सभी को हजारों किलोमीटर की दूरी तय करके दिल्ली पहुंचने में अनेक प्रकार के कष्ट झेलने पड़े होंगे। इसके लिए ये सभी बधाई के पात्र हैं। हमारी कुछ मांगें हैं, जिन्हें हम सरकार के द्वारा पूरी करवाना चाहते हैं। हम लोग भारत की आबादी में 6 प्रतिशत हैं। अगर जनजाति, एनआरआई और उत्तर-पूर्व के लिए अलग से मंत्रालय बन सकता है, तो 6 से 7 करोड़ की आबादी वाले विकलांग लोगों के लिए अलग से मंत्रालय या विभाग क्यों नहीं बन सकता? अभी तक इंटरनेट पर कोई भी ऐसी बेवसाइट नहीं है, जो विकलांगता को ध्यान में रखकर बनाई गई हो। यहां तक कि आज भी एक अच्छे किस्म की व्हील चेयर हमारे देश में नहीं मिलती। हम लोगों की इतनी बड़ी आबादी है, तो हम भी बराबरी के अधिकार के साथ कार्य करना और अपने देश की सेवा करना चाहते हैं। हम सभी भारत की अर्थव्यवस्था में उतना ही योगदान करते हैं, जितना कि आम आदमी। हम समाज पर एक बोझ नहीं हैं, क्योंकि हम सभी सरकार को टैक्स का भुगतान भी करते हैं। फिर हमारे साथ सौतेला व्यवहार क्यों किया जाता है। संविधान के अनुसार, सभी मंत्रालयों को अपने बजट का 3 प्रतिशत विकलांगता के लिए आवंटित करने का प्रावधान है, लेकिन हमें उतनी राशि नहीं मिलती। हमारे लिए 30 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान भी है, लेकिन हमें सभी विभागों में नौकरी के वक्त उचित हिस्सेदारी नहीं मिलती। इसलिए हमारी शिकायत देश के राजनीतिज्ञों से है, जिन्हें वोट बैंक की राजनीति करने से फुरसत नहीं है। क्या हम लोग किसी के वोट बैंक नहीं हैं?

मंगलवार, 2 दिसंबर 2008

गौ-रक्षा को लेकर धरणा
संजीव कुमार

कितनी बड़ी बिडंबना है कि हमारे देश में प्रजातंत्र है। और यहां जनता का शासन है लेकिन इस देश में आम जनता चाहे गाजर-मूली की तरह कट जाए उसकी परवाह करने वाला कोई नहीं है, लेकिन राजनेता की सुरक्षा हर कीमत पर होगी। जो सरकार आम जनता की रक्षा नहीं कर पा रही हो उस निकम्मी सरकार से गौ-रक्षा की गुहार करना बेमानी है। जो सरकार आम जनता की रक्षा नहीं कर पा रही हो, उस निकम्मी सरकार से गौ-रक्षा की गुहार करना बेमानी है। हाल ही मेेंं जगद्गुरु शंकराचार्य सहित अनेक धर्माचार्यों ने गौ-संरक्षण को लेकर जंतर-मंतर पर धरणा दिया। इस धरणा में कई धार्मिक संगठनों के आचार्यों ने सरकार से गौ-हत्या पर प्रतिबंध लगाने की मांग की। साथ ही गंगा को राष्ट्रीय नदी घोषित किए जाने के तर्ज पर गाय को भी 'राष्ट्रीय प्राणी' घोषित करने और गौ-रक्षा के उपाय करने का सरकार से गुजारिश किया।
ऐसा नहीं है कि गौ-वध पर प्रतिबंध की मांग पहली बार की गई। इस धरणा-प्रदर्शन के पीछे एक लंबी परंपरा है। गौ-रक्षा को लेकर सबसे पहले सात नवंबर,1966 को संसद के सामने प्रदर्शन किया गया था। इसी प्रदर्शन के दौरान प्रदर्शनकारियों और पुलिस के बीच झड़प हुई। और यह झड़प पुलिस फायरिंग में बदल गई। इस फायरिंग में अनेक प्रदर्शनकारी मारे गए। इसके बाद भी अनेक रैली और प्रदर्शन हुए। लेकिन नतीजा वही 'ढांक के तीन पात' वाली। जंतर-मंतर का हालिया रैली और प्रदर्शन नवंबर,1966 के पुलिस फायरिंग में मारे गए हिंदू प्रदर्शनकारियों के श्रध्दांजलि स्वरूप आयोजित किया गया था। गौरतलब यह है कि इस बार इस रैली और धरणा में मुसलिम समुदाय के लोगाें ने भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था। जिस तरह से मुसलिम समुदाय के लोगाें ने इस आंदोलन में हिस्सा लिया इससे आंदोलन में एक नया आयाम जुड़ गया है। इतना ही नहीं, कुरैश समुदाय के लगभग पांच लाख मुसलमानों ने भी सरकार से गौ-वध पर प्रतिबंध लगाने और उसके संरक्षण के उपय किए जाने की मांग की। इससे इस आंदोलन को बल मिलता है। इसके अलावा, इस समुदाय के लोगाें द्वारा हस्ताक्षर युक्त एक ज्ञापन उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी को भी दिया जाएगा। साथ ही, कुरैश समुदाय के मुसलमानों ने इस अवसर पर यह भी संकल्प लिया कि वे इस वर्ष बकरीद के त्योहार पर गायों की कुर्बानी किसी भी कीमत पर नहीं देंगे।
भले ही सरकार से हमें कोई उम्मीद न हो कि वह गौ-वध पर प्रतिबंध लागाएगी। लेकिन जिस तरह से कुरैश समुदाय के मुसलमानों ने गौ-वध न करने का संकल्प लिया, उससे अवश्य एक उम्मीद की किरण निकलती दिखाई देती है। अगर इसी तरह पूरा मुसलमान समुदाय गौ-वध न करने का प्रण ले ले तो निश्चय ही गौ-वध बंद हो जाएगा और हमें सरकार से इसके लिए मांग करने की आवश्यकता नहीं होगी।
इस अवसर पर हिंदू और मुसलमान सहित अनेक समुदाय के लोगों ने श्रध्दांजलि सभा में भाग लिया। इस सभा में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक के.एस. सुदर्शन, विहिप के अंतरराष्ट्रीय महामंत्री प्रवीण तोगड़िया, राष्ट्रीय मुसलिम मंच के मौलाना ओबेद इलियासी और मुहम्मद अफजाल, हज कमेटी के पूर्व अध्यक्ष तनवीर अहमद, जैन आचार्य विवेक मुनि, अखिल भारतीय हिंदू महासभा की अध्यक्ष हिमानी सावरकर सहित दिल्ली में भाजपा के घोषित मुख्यमंत्री विजय कुमार मल्होत्रा, पूर्व मुख्यमंत्री मदन लाल खुराना, दिल्ली की महापौर आरती मेहरा, पूर्व सांसद बीएल शर्मा, पूर्व मंत्री सत्यनारायण जाटिया, विजय गोयल आदि ने अपने विचार व्यक्त करते हुए सभा को संबोधित किया।
जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी माधवाश्रम महाराज ने जंतर-मंतर से संसद चौक तक जाकर 1966 में गो-रक्षा आंदोलन में शहीद हुए लोगों को श्रध्दांजलि अर्पित की। इसके पहले इनके नेतृत्व में जंतर-मंतर पर बड़ी संख्या में लोग एकत्रित हुए और तत्काल गोवध पर प्रतिबंध लगाने की मांग की। इस अवसर पर शंकराचार्य के साथ देनेवालों में सुमेरूपीठ के नरेंद्रानंद सरस्वती, महंत सुरेद्रनाथ अवधूत, महंत नारायण गिरि, संत हंसदास सहित अनेकों संत शामिल हुए।



जंतर-मंतर पर केरल के मुख्यमंत्री अच्युतानंदन

राजनीति का एक अंदाज यह भी
संजीव कुमार
भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है कि किसी राज्य का मुख्यमंत्री केंद्र सरकार के सौतेले व्यवहार के खिलाफ संसद के सामने धरने में शामिल हुआ हो। हाल ही में केरल के मुख्यमंत्री का यह निराला अंदाज सामने आया
अमूमन जंतर-मंतर पर आम भारतीय नागरिक ही अपनी मांगों को लेकर धरना-प्रदर्शन किया करते हैं। लेकिन अगर किसी राज्य का मुख्यमंत्री आम आदमी की कतार में खड़ा होकर धरना-प्रदर्शन करे तो इसे एक राजनीतिक स्टंट नहीं तो और क्या कहा जाएगा?
भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है कि किसी राज्य का मुख्यमंत्री केंद्र सरकार के सौतेले व्यवहार के खिलाफ संसद के सामने धरने में शामिल हुआ हो। हाल ही में केरल के मुख्यमंत्री वी.एस. अच्युतानंदन ने केरल के वामपंथी विधायकों, सांसदों और सीपीआई-सीपीएम नेताओं के साथ जंतर-मंतर से संसद तक केरल के प्रति केंद्र की उदासीनता के विरोध में मार्च किया तथा धरना दिया। साथ ही केंद्र सरकार पर राज्य के प्रति उदासीन रवैया अपनाने का आरोप लगाया। उनका कहना था कि केंद्र सरकार राज्य की जरूरत के अनुसार सरकारी फंड उपलब्ध नहीं कराती।
इस धरने को केरल के मुख्यमंत्री वी.एस. अच्युतानंदन सहित अनेक वामपंथी नेताआें ने संबोधित किया। सीपीआई (एम) के महासचिव प्रकाश करात का कहना था कि शक्ति की केंद्रीयता केंद्र के पक्षपातपूर्ण रवैये से साफ दिखाई पड़ती है। केरल के संदर्भ में एक नया केंद्र-राज्य संबंध दिखाई देता है। वहीं केरल के मुख्यमंत्री अच्युतानंदन का कहना था कि केंद्र केरल के साथ उपेक्षापूर्ण व्यवहार कर रहा है। राज्य की आवश्यकताओं को पूरा करने मेें केंद्र सरकार कतराती है, खासकर संकटकालीन स्थितियों में। उन्होंने अपनी समस्याओं को केंद्र के सामने रखा, जिसमें गरीबी रेखा से ऊपर जीवन जीने वाले परिवारों के लिए चावल का कोटा पुन: बहाल करने, केंद्र द्वारा बिजली की आपूर्ति फिर से बहाल करने, केरल में आईआईटी की स्थापना तथा राज्य में रेलवे जोन की स्थापना जैसे मुद्दे शामिल थे।
उनका कहना था कि केंद्र सरकार वादे तो बहुत करती है, लेकिन उसे क्रियान्वित नहीं करती। दिल्ली आकर विरोध प्रदर्शन के पीछे यही कारण है। उनके अनुसार केंद्र सरकार ने पहले एपीएल परिवारों के लिए चावल कोटा 1,13,420 टन निर्धारित किया था, जिसे बाद में घटाकर 17,056 टन कर दिया गया और कुछ समय बाद तो उसे पूरी तरह बंद ही कर दिया गया। साथ ही केंद्र के द्वारा दी जाने वाली बिजली को 1188 मेगावॉट से घटाकर 667 मेगावॉट कर दिया गया है।
इस धरने में सीपीआई (एम) के नेता सीताराम येचुरी, प्रकाश करात, वृंदा करात, सीपीआई के सहसचिव सुधाकर रेड्डी, आरएसपी नेता टी.जे. चंद्रचूड़न और फॉरवर्ड ब्लॉक के नेता जी. देवराजन आदि शामिल थे। धरने में केरल के मुख्यमंत्री का साथ देने वालों में उनके 16 मंत्रियों और 50 विधायकों के अलावा अनेक सांसद भी मौजूद थे।
केरल में विपक्षी कांग्रेस गठबंधन का आरोप है कि अच्युतानंदन ने यह कदम केरल में अपनी विफलता को छुपाने के मकसद से उठाया है। जब अच्युतानंदन अपने सहयोगियों के साथ यहां संसद की ओर कूच कर रहे थे, ठीक उसी समय तिरुवनंतपुरम में कांग्रेस भी एलडीएफ सरकार के खिलाफ प्रदर्शन कर रही थी। ऐसा मुख्यमंत्री की मुहिम की हवा निकालने के लिए किया गया। कांग्रेस नेता उमन चांडी ने एलडीएफ सरकार पर आरोप लगाते हुए कहा कि केरल में एलडीएफ सरकार हर मोर्चे पर विफल रही है। इस पर पर्दा डालने के लिए उसका केंद्र पर अंगुली उठाना किसी भी तरह उचित नहीं है।
ऐसा भी कहा जा रहा है कि वाम शासित राज्यों में विकास और आम आदमी की बदहाली को बड़ा चुनावी मुद्दा बनाने की विपक्षी तैयारियों के मद्देनजर वामदल सचेत हो गए हैं। राज्य में उन्हें हार का मुंह देखना न पड़े, इसलिए पहले ही कदम उठाते हुए उन्होंने राज्य की बदहाली के लिए केंद्र सरकार को कटघरे में खड़ा करना शुरू कर दिया है। इसी रणनीति पर अमल करते हुए बीते 17 अक्टूबर को केरल के मुख्यमंत्री वी.एस. अच्युतानंदन ने अपने सहयोगियों के साथ संसद के सामने धरना देकर विकास की राजनीति को हवा दे दी।
बहरहाल, सत्य चाहे जो भी हो, लेकिन इस बात से कोई भी इनकार नहीं कर सकता कि केरल का समुचित विकास नहीं हुआ है और वहां की आम जनता अब भी बदहाली का जीवन जी रही है। आम जनता पर राजनीति करना तो हमारे राजनेताओं की पुरानी आदत है। खैर, किसी बहाने केरल की आम जनता की बदहाली का संदेश पूरे देश में गया तो अवश्य।